द्रवरागी और द्रवविरागी सॉल बनाना।

VIGYAN
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 उद्देश्य ;1 द्रवरागी और 2 द्रवविरागी सॉल बनाना।

सिध्दांत :   द्रव रागी सॉलों में परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का परिक्षेपण माध्यम के कणों की ओर आकर्षण होता है अतः यह सॉल द्रव विरागी सॉलों की अपेक्षा अधिक स्थाई होते हैं। सॉलों के स्थायित्व के लिए उत्तरदायी दो कारक हैं - आवेश और विलायक कणों का विलायक योजन।
द्रव रागी सॉलों का स्थायित्व मुख्यतः कोलॉइडी कणों के विलायक योजन के कारण होता है जबकि द्रव विरागी सॉल कोलॉइडी कणों के आवेश द्वारा स्थायित्व प्राप्त करते हैं। अपने आवेश के कारण कोलॉइडी कण विलयन में निलंबित रहते हैं और स्वंफदन नहीं होता। यह आवेश ऋणात्मक अथवा धनात्मक हो सकते हैं। ऋणात्मक आवेश वाले सॉल के कुछ उदाहरण हैं स्टार्च और आर्सेनियस सल्पफाइड। फेरिक क्लोराइड को गरम जल के आध्क्यि में मिलाने पर जलयोजित फेरिक ऑक्साइड का धन आवेशित सॉल बनता है तथा जब फेरिक क्लोराइड को छंव्भ् विलयन मिलाने से जलयोजित फेरिक ऑक्साइड का ऋण आवेशित सॉल बनता है। द्रवरागी सॉल, पदार्थ को सीधे ही उपयुक्त द्रव में मिलाकर और विलोड़ित करके बन जाते हैं। द्रव विरागी सॉलों को सीधे ही विलायक में मिलाकर विलोड़ित करने से नहीं बनाया जा सकता। इन्हें बनाने के लिए विशेष विद्यियाँ  अपनाई जाती हैं।

1.  द्रवरागी सॉल बनाना :  अंड एल्ब्यूमिन सॉल-  एक 250 ml के बीकर में सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन के 100 ml बनाएं।  एक पॉर्सीलेन प्याली में अंडा तोड़कर डालें और पिपेट से एल्ब्यूमिन निकाल कर सोडियम क्लोराइड विलयन में डालें। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सॉल अच्छी तरह बन जाए इसे अच्छी तरह से विलोड़ित करें।
2.  स्टार्च/गोंद का सॉल- ; 250 ml के बीकर में मापक सिलेंडर की सहायता से 100 ml आसुत जल मापकर लें और उबालें।  500 ml स्टार्च अथवा गोंद का गरम जल में लेप बना कर इसे में तैयार किए गए 100 ml उबलते जल में लगातार विलोड़न वेफ साथ मिलाएं। जल को लेप मिलाने के बाद दस मिनट तक उबालते और विलोड़ित करते रहें। बनाए गए सॉल की प्रभावउत्पादकता जाँचने के लिए इसकी तुलना मूल लेप से करें।

3.  द्रवविरागी सॉल बनाना : 2  . फेरिक हाइड्रॉक्साइड/ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड सॉल-  एक 250 ml के बीकर में 100 ml आसुत जल लेकर उबालें।  उबलते हुए जल में  फेरिक क्लोराइड/ऐलुमिनियम क्लोराइड पाउडर मिलाएं और अच्छी तरह विलोड़ित करें।

4. आर्सेनियस सल्फाइड सॉल-  250 ml क्षमता वाले बीकर में 100 ml आसुत जल लें। इसमें आर्सेनियस ऑक्साइड मिलाएं और बीकर की सामग्री को उबालें। विलयन को ठंडा करें और निस्यंदित कर लें। निस्यंदित विलयन में से H2S गैस तब तक प्रवाहित करें जब तक इसमें सेH2S की गंध् न आने लगे ;H2S गैस प्रवाहित करने के लिए किप उपकरण का प्रयोग करें।  सॉल का धीरे - धीरे गरम करके उसमें से H2Sगैस निकाल दें और इसे निस्यंदित कर लें। निस्यंद को आर्सेनियस सल्फाइड सॉल लेबल करें।
सावधनियाँ  1. स्टार्च, गोंद, पेफरिक क्लोराइड, ऐलुमिनियम क्लोराइड इत्यादि का सॉल बनाते हुए लेप अथवा विलयन को गरम जल में धीरे -धीरे  लगातार विलोड़न के साथ मिलाएं। इन पदार्थों को आधिक्य में मिलाने से अवक्षेपण हो सकता है। 2.  आर्सेनियस ऑक्साइड विषैली प्रकृति का होता है इसलिए प्रत्येक बार इस रसायन का प्रयोग करने के तुरन्त हाथ को अच्छीतरह से साफ कर ले

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