SCIENCE X IMPORTANT QUESTION OF CLASS X CHEPTER 9

VIGYAN
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अध्याय - ९ प्रकाश

प्र.१. प्रकाश क्या है? पृथ्वी पर प्रकाश का मुख्य स्त्रोत क्या है?
उत्तर. प्रकाश विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होने वाली एक प्रकार की ऊर्जा है। पृथ्वी पर प्रकाश का मुख्य स्त्रोत सूर्य है।
प्र.२. प्रकाश का  परवर्तन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है। समझाइए।
उत्तर.  प्रकाश का परवर्तन- जब प्रकाश की  किरणें किसी पृष्ठ पर गिरती है तो उनमें से अधिकांश किरणें निश्चित दिशाओं में गमन कर जाती है। इसे परावर्तन कहते हैं।
जब प्रकाश किरण एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम की  सतह से टकराकर पुन: उसी माध्यम में निश्चित दिशा में लौट जाती है। प्रकाश किरण की इस घटना को परावर्तन कहते हैं। परावर्तन दो प्रकार का होता है- नियमित परावर्तन और विसरित परावर्तन।
नियमित परवर्तन - जब प्रकाश किसी चिकने समतल पृष्ठ पर आपतीत होता है तो वह सरलतम पृष्ठ पर विशेष दिशा से देखने पर चमकता हुआ दिखाई देता है। एवं अन्य दिशाओं में लगभग सामान्य ही रहता है। आपतित प्रकाश पुंज को  चिकने पृष्ठों द्वारा माध्यम में एक विशिष्ट दिशा में भेज देने को नियमित परावर्तन कहते हैं।
विसरित परावर्तन- खुरदरे पृष्ठों द्वारा प्रकाश को  सभी दिशाओं में बिखेरने के प्रभाव को विसरित परावर्तन कहते हैं।
प्र.३. परावर्तन के नियम लिखिए।
उत्तर.परावर्तन के नियम निम्न है-
१.    आपतित किरण परावर्तित किरण एवं आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब एक ही समतल पर होते हैं।
२.   आपतित किरण जितना  कोण अभिलम्ब के साथ बनाती है उतना ही कोण परिवर्तित किरण अभिलम्ब के साथ बनाती है। अर्थात आपतन कोण व अपवर्तन कोण का मान समान होता है।
प्र.४. समतल दर्पण से प्रतिबिम्ब को समझाइए।  पाश्र्व परावर्तन किसे कहते है?
उत्तर. समतल दर्पण से बनने वाला प्रतिबिम्ब आभासी होता है। वह प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने होती है। प्रतिबिम्ब का  आकार जितना ही होता हैं।
बिम्ब का बायाँ भाग प्रतिबिम्ब का दायाँ भाग व बिम्ब का दायाँ भाग प्रतिबिम्ब का बायाँ भाग होने को  पाश्र्व परावर्तन कहते हैं।
प्र.५. गोलीय दर्पण किसे कहते हैं? कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर.  ऐसे दर्पण जिनके  परावर्तक  पृष्ठ गोलीय होते हैं, गोलीय दर्पण कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं।
उत्तल दर्पण व अवतल दर्पण
१.   उत्तल दर्पण - इसे गोलीय पृष्ठ जिनका बाहरी भाग दर्पण के  परवर्तक पृष्ठ की  तरह उपयोग में लिया जाता है, उत्तल दर्पण कहलाते हैं।
२.   अवतल दर्पण - इनके  परवर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर वक्रित होते हैं अवतल दर्पण कहलाते हैं।
प्र.६. गोलीय दर्पण से सम्बन्धित निम्न पदों को समझाइए।
ध्रुव , वक्रता केन्द्र, वक्रता त्रिज्या, मुख्य अक्ष, मुख्य फोकस, फोकस दूरी
उत्तर.  १.   ध्रुव - दर्पण का  मध्य बिन्दु ध्रुव कहलाता है।
२.    वक्रता केन्द्र - यह उस खोखले गोले का केन्द्र बिन्दु होता है, जिसका  दर्पण एक भाग होता है।
३.   वक्रता त्रिज्या - यह उस खोखले गोले की त्रिज्या होती है जिसका दर्पण एक भाग होता है।
४.   मुख्य अक्ष - दर्पण के  ध्रुव व वक्रता केन्द्र को मिलाने वाली रेखा, दर्पण की मुख्य अक्ष कहलाती है।
५.   मुख्य फोकस - जब एक समान्तर किरण-पुंज अवतल दर्पण से परावर्तित होती है तो परावर्तन के पश्चात किरण-पुंज अभिसारित होकर दर्पण के सामने एक बिन्दु पर मिलती है। इस बिन्दु को अवतल दर्पण का  फोकस कहते हैं। उत्तल दर्पण पर जब समान्तर किरण पुंज आपतित होती है तो परावर्तन के पश्चात अपसारित हो जाती है। इन परावर्तित किरणों को पीछे बढ़ाने पर वे दर्पण के पीछे एक बिन्दु पर मिलती है ऐसा प्रतीत होता है कि परावर्तित किरणे इस बिन्दु से आ रही है। इस बिन्दु का उत्तल दर्पण का फोकस कहते हैं।
६.   फोकस दूरी- किसी भी दर्पण के ध्रुव से फोकस की दूरी को फोकस दूरी कहते हैं।
प्र.६. गोलीय दर्पण द्वारा परावर्तन के लिए कार्तीय चिह्न परिपाटी को समझाइए।
उत्तर. गोलीय दर्पण द्वारा परावर्तन के लिए कार्तीय चिह्न परिपाटी -
१.    मुख्य अक्ष के समान्तर सभी दूरियाँ दर्पण के ध्रुव से मापी जाती है।
२.   बिम्ब दर्पण के बांयी ओर रखा जाता है अर्थात बिम्ब से आने वाली किरणें दर्पण पर सदैव बांयी ओर से आपतित होती है।
३.   मुख्य अक्ष के समान्तर मूल बिन्दु के बांयी ओर की सभी दूरियाँ ऋणात्मक  मान ली जाती है। जैसे उत्तल  व अवतल दर्पण दोनों में बिम्ब की दूरी हमेशा ऋणात्मक होगी। इसी प्रकार मूल बिन्दु के दांयी ओर की सभी दूरियाँ धानात्मक  मानी जाती है।
४.   मुख्य अक्ष के ऊपर की ओर लम्बवत् मापी जाने वाली दूरियाँ धानात्मक मानी जाती है जबकि मुख्य अक्ष के नीचे की ओर लम्बवत् मापी जाने वाली दूरियाँ ऋणात्मक मानी जाती है।
प्र.७. दर्पण सूत्र लिखिए।
उत्तर.
जहाँ धु्रव से बिम्ब की दूरी ह्व है।
ध्रुव से प्रतिबिम्ब की दूरी 1 है।
ध्रुव से फोकस दूरी द्घ है।
प्रश्न २.    उपयुक्त किरण चित्र की  सहायता से अवतल दर्पण के लिए दर्पण सूत्र की व्युत्पत्ति कीजिए।
अथवा
दर्पण के लिए ह्व, 1 तथा द्घ मे सम्बन्ध स्थापित कीजिए। पतले लैन्स के लिए सम्बन्धि सूत्र लिखिए।
उत्तर-     अवतल दर्पण के लिए दर्पण सूत्र - माना कि अवतल दर्पण का ध्रुव क्क,  मुख्य फोकस  स्न, वक्रता केन्द्र ष्ट, तथा फोकस दूरी द्घ  हैं। ्रक्च एक  बिम्ब हैं जो दर्पण के  सामने मुख्य अक्ष ङ्गङ्गज् पर अनन्त तथा दर्पण के  वक्रता केन्द्र ष्ट के बीच स्थित हैं। बिम्ब ्रक्च के बिन्दु ्र से मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित किरण ्ररू परावर्तन के  पश्चात् रूहृ मुख्य फोकस स्न से गुजरती हैं तथा एक  अन्य किरण ्ररु वक्रता केन्द्र ष्ट से होकर आपतित होती हैं जो परावर्तन के पश्चात् उसी पथ से गुजरती हैं। परावर्तित किरणें रूहृ तथा रुष्ट परस्पर बिन्दु ्रज् पर मिलती हैं तथा बिम्ब ्रक्च का प्रतिबिम्ब ्रज्क्चज् बनाती हैं। ्रज्क्चज् बिम्ब ्रक्च का वास्तविक प्रतिबिम्ब हैं।
चिह्न परिपाटी के अनुसार
बिम्ब की दूरी क्कक्च = - ह्व
प्रतिबिम्ब की दूरी क्कक्चज् = - 1
फोकस दूरी क्कस्न = - द्घ
वक्रता त्रिज्या क्कष्ट = - क्र = -२द्घ
्रक्चष्ट तथा ्रज्क्चज्ष्टज् में
्रक्चष्ट = ष्टक्चज््र (प्रत्ये· ९००)
्रष्टक्च = ्रज्ष्टक्चज् (सम्मुख ·ोण)
अत:्रक्चष्ट ्रज्क्चज्ष्टज्
भुजाएँ समानुपाती होगी।
अर्थात्  =  =
=  =                 .....(१)
चूँकि दर्पण का  द्वारक  छोटा हैं अत: रूक्क को  एक  सरल रेखा होगी।
त्रिभुज रूक्कस्न और ्रज्क्चज्स्न  में
रूक्कस्न = स्नक्चज््र = ९००
रूक्कस्न = क्चज्स्न्रज् (सम्मुख ·ोण)
अत:रूक्कस्न ्रज्क्चज्स्न समरूप होगें।
भुजाएँ समानुपाती होगी।
=
या = = = .....(२)
समी·रण (१) तथा (२) से
=
या ह्व1 -२ द्घ1 - ह्वद्घ +२ द्घ २ = २द्घ २ -द्घ1
या ह्व1 - द्घ1 - ह्वद्घ  = ०
या ह्व1 =  द्घ1 + ह्वद्घ                             ....(३)
दोनों ओर ह्व1द्घ  से भाग देने पर
....(४)
पतले लैन्स के लिए सूत्र
प्र.८. अपवर्तन को  परिभाषित कीजिए।
उत्तर. जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माधम में प्रवेश करती है तो पृथक्कारी तल पर अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती है। प्रकाश किरण की दिशा परिवर्तन की  यह क्रिया अपवर्तन कहलाती है।
प्र.९. अपवर्तन क्यों होता है?
उत्तर. अलग-अलग माध्यमों में प्रकाश का वेग अलग-अलग होने के कारण अपवर्तन होता है।
प्र.१०.पानी में रखा हुआ सिक्का ऊपर उठा हुआ क्यों प्रतीत होता है।
उत्तर. सिक्के से आने वाली प्रकाश किरण पानी सघन माध्यम से वायु विरल माध्यम में प्रवेश करते समय अभिलम्ब से दूर हो जाती है और सिक्का ऊपर उठा हुआ प्रतीत होता है।
प्र.११. अपवर्तन के नियम लिखिए।
उत्तर.   अपवर्तन के नियम -
१.    आपतित किरण, अपवर्तित किरण व अभिलम्ब तीनों एक ही तल में है।
२.    आपतन कोण द्ब की ज्या एवं अपवर्तन कोण ह्म् की  ज्या का अनुपात स्थिर रहता है।
= स्थिरांक
यह अपर्वतन का  दूसरा नियम है जिसे स्नेल का  नियम भी कहते हैं।
प्र.१२. अपवर्तनांक किस पर निर्भर करता है।
उत्तर.  अपवर्तनांक माध्यम की  प्रकृति, घनत्व व प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है। बैंगनी रंग के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक सबसे अधिक तथा लाल रंग के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक सबसे कम होता है।
प्र.१३. क्रान्तिक  कोण व पूर्ण आन्तरिक परावर्तन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर. क्रान्तिक  कोण-जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है, तो सघम माध्यम में आपतन कोण का वह मान जिस पर अपवर्तन कोण का मान ९०० हो, क्रान्तिक कोण कहलाता है।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन-जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है, तो आपतन कोण का मान क्रान्तिक  कोण से अधिक होने पर प्रकाश किरण पुन: उसी माध्यम में अपवर्तित हो जाती है। इस घटना को पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं।
प्र.१४. प्रकाश के वर्ण विक्षेपण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर. वर्ण विक्षेपण-सूर्य का  प्रकाश जब किसी कांच के प्रिज्म में से होकर गुजरता है तो प्रकाश सात रंगों में विभक्त हो जाता है। इसे प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते हैं। रंगों का वर्ण विक्षेपण क्रम को  ङ्कढ्ढक्चत्रङ्घह्रक्र से जाना जाता है।
प्र.१५. गोलीय लेंस से अपवर्तन के नियम लिखिए।
उत्तर.गोलीय लेंस से अपवर्तन के नियम-
१.    मुख्य अक्ष के समान्तर आने वाली प्रकाश किरण उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात मुख्य फोकस से गुजरती है।  अवतल लेंस से अपवर्तन के पश्चात इन अपवर्तित ·िरणों ·ो पीछे मिलाने पर जिस मुख्य फोकस पर मिलती हुई प्रतीत होती है।
२.    मुख्य फोकस से आने वाली प्रकाश ·िरण लेंस से अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समान्तर चली जाती है या प्रतीत होती है।
३.    लेंस के प्रकाशिक केन्द्र से आने वाली ·िरण बिना अपवर्तित हुए सीधी चली जाती है।
प्र.१३. उत्तल लेंस से विभिन्न स्थितियों में प्रतिबिम्ब निर्माण ·ो समझाइए।
उत्तर.  उत्तल लेंस से प्रतिबिम्ब का निर्माण-
१.    जब वस्तु अन्नत पर स्थित हो- अन्नत से आने वाली प्रकाश ·िरणे मुख्य अक्ष के समान्तर आती है। इसलिए प्रतिबिम्ब मुख्य फोकस पर बनेगा। यह उल्टा, वास्तविक व अत्यन्त छोटा होगा।
२.    जब वस्तु अन्नत व २द्घ  के मध्य स्थित हो-प्रतिबिम्ब  द्घ व २द्घ के बीच बनता है। यह उल्टा, वास्तविक व वस्तु से छोटा होता है।
३.    जब वस्तु २द्घ  पर स्थित हो-प्रतिबिम्ब २द्घ पर बनता है। यह उल्टा, वास्तविक व वस्तु वस्तु के आकार के बराबर होता है।
४.    जब वस्तु २द्घ व द्घ  के मध्य स्थित हो-प्रतिबिम्ब  २द्घ व अन्नत के बीच बनता है। यह उल्टा, वास्तविक व वस्तु से बड़ा होता है।
५.    जब वस्तु द्घ  पर स्थित हो-प्रतिबिम्ब  अन्नत पर बनता है। यह उल्टा, वास्तवि· व वस्तु से बहुत बड़ा होता है।
६.    जब वस्तु द्घ व प्रकाश केन्द्र के मध्य स्थित हो-प्रतिबिम्ब लेंस के उसी तरफ बनता है। यह सीधा आभासी व वस्तु से बड़ा होता है।
प्र.१४. लेंस क्षमता को  समझाइए।
उत्तर.  लेंस क्षमता - लेंस की  प्रकाश किरणों को अभिासरित या अपसारित करने की क्षमता लेंस क्षमता कहलाती है। लेंस की क्षमता उसकी  फोकस दूरी के व्युत्क्रम होती है।
क्क =
यदि द्घ मीटर में हो तो लेंस की क्षमता क्क का मात्रक डाइऑप्टर होता है।
दो या दो से अधि· लेंस को मिला दिया जाय तो इस संयोजन की परिणामी क्षमता  क्क=क्क१+क्क२+क्क३+......क्कठ्ठ होती है।
प्र.१५. मानव नेत्र की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर.  नेत्र की संरचना - नेत्र लगभग २.५ सेमी व्यास का एक गोलाकार भाग होता है। इसके प्रमुख भाग इस प्रकार है।
१. श्वेत पटल - नेत्र के चाारों ओर एक श्वेत सुरक्षा कवच होता है जो अपदर्शक होता है। इसे श्वेत पटल कहते हैं।
२. कॉर्निया - नेत्र के सामने श्वेत पटल के मध्य में थोड़ा उभरा हुआ पारदर्शी भाग होता है। प्रकाश की किरण इसी भाग से नेत्र में प्रवेश करती है।
३. परितारिका - कॉर्निया के ठीक  पीछे एक अपारदर्शी मांसपेशियों का  एक  पर्दा होता है। जिसके बीच में एक छिद्र होता है। इसका रंग अधिकांशत: काला होता है।
४. पुतली- परितारिका के बीच वाले छिद्र को पुतली ·हते हैं। परितारिका की मांसपेशियों के संकुचन व फैलने से पुतली का  आकार कम या ज्यादा होता है। तीव्र प्रकाश में इसका आकार कम तथा कम प्रकाश में इसका आकार बढ़ जाता है। इस प्रकार यह नियंत्रित प्रकाश को ही आँख में प्रवेश करने देती है।
५. नेत्र लेंस - परितारिका के ठीक पीछे एक लचीला पारदर्शक पदार्थ का लेंस होता है जो मांसपेशियों की सहायता से अपने स्थान पर रहता है।
६. जलीय द्रव - नेत्र लेंस व कॉर्निया के मध्य पारदर्शक द्रव भरा रहता है। यह इस भाग में उचित दबाव बनाए रखता है।
७. रक्त पटल- नेत्र के श्वेत पटल के नीचे एक झिल्ली नुमा संरचना होती है जो रेटिना को पोषण प्रदान करती है। आँख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण कर भीतरी दिवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरूद्ध करती है।
८. दृष्टि पटल - रक्त पटल के नीचे एक पारदर्शक झिल्ली होती है जिसे दृष्टि पटल कहते हैं। वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें लेंस से अपवर्तित होकर दृष्टि पटल पर फोकसित होती है। दृष्टि पटल में अनेक  प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती है। प्रकाश मिलते ही ये कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती है। एवं विद्युत आवेगों को मस्तिष्क में प्रेषित करती है। मस्तिष्क इस उल्टे प्रतिबिम्ब का उचित संयोजन करके उसे हमें सीधा दिखाता है।
९. काचाभ द्रव - नेत्र लेंस व रेटिना के मध्य पारदर्शक द्रव भरा रहता है। जिसे काचाभ द्रव कहते हैं।
प्र.१६. दृष्टि दोष और उनका निवारण को समझाइए।
उत्तर.  दृष्टि दोष - उम्र बढऩे के साथ साथ मांसपेशियों में संमजन क्षमता ·म होने से, चोट लगने से, नेत्रों पर अत्यधि· तनाव आदि अनेक कारण से नेत्रों की समंजन क्षमता कम होने लगती है। प्रमुख दृष्टि दोष निम्न प्रकार है-
१. नि·ट दृष्टि दोष - इस दोष में व्यक्ति ·ो नि·ट ·ी वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है परन्तु दूर ·ी वस्तु धुंधली दिखाई देती है। यह दोष लेंस ·ी व·्रता त्रिज्या बढ़ जाने के ·ारण होता है। इसमें वस्तु ·ा प्रतिबिम्ब रेटिना से पहले बन जाता है।
इस दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता ·ा अवतल लेंस आँख के लेंस के आगे लगाया जाता है।
२. दूर दृष्टि दोष - इस दोष में व्यक्ति को दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है परन्तु पास की वस्तु धुंधली दिखाई देती है।  इस दोष में वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के बाद  बनता है।
इस दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता का उत्तल लेंस आँख के लेंस के आगे लगाया जाता है।
३. जरा दृष्टि दोष - व्यक्ति की  आयु बढऩे के साथ लेंस की संमजन क्षमता ·म हो जाती है। इस कारण उन्हें जिससे व्यक्ति को दूर व पास दोनों वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।
इस दोष के निवारण के लिए उचित क्षमता का द्विफोकसी लेंस आँख के लेंस के आगे लगाया जाता है। इसमें ऊपरी भाग पर अवतल लेंस तथा नीचे के भाग पर उत्तल लेंस होता है।
४. दृष्टि वैषम्य दोष - यह दोष कार्निया की  गोलाई में अनियमिता के कारण उत्पन्न होता है। इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर ऊध्र्वाधर व क्षैतिज रेखाएं एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।
इस दोष के निवारण के लिए बेलनाकार लेंस का उपयोग किया जाता है।
५. मोतियाबिंद- आयु बढऩे के साथ नेत्र की  पारदर्शिता कम होने लगती है। लेंस का लचिलापन कम होने लगाता है। इस कारण यह प्रकाश का परावर्तन करने लगता है। और वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखाई देती है। इस दोष को मोतियाबिंद ·हते हैं।
इस दोष में मोतियाबिंद लेंस को निकाल कर आँख में एक कृत्रिम लेंस लगाया जाता है। जिसे इन्ट्रा आक्यूलर लेंस कहते हैं।
आंकिक  प्रश्न
प्र.१६. एक अवतल दर्पण की फोकस दूरी ३० सेमी है। यदि एक बिम्ब ४० सेमी पर रखा है तो प्रतिबिम्ब की स्थिति बताइए। प्रतिबिम्ब का आवर्धन भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर. फोकस दूरी द्घ = - ३० ष्द्व  (अवतल दर्पण)
बिम्ब की दूरी = ह्व = -४० ष्द्व
प्रतिबिम्ब की दूरी = 1 = ?
आवर्धन क्षमता = द्व = ?
दर्पण सूत्र से +=
या =-=-
या =+==
1 = -१२० ष्द्व
आवर्धन क्षमता = द्व = ===३
अर्थात प्रतिबिम्ब बिम्ब से बड़ा ३ गुना होगा।

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